Origin and Development of Mahajanpadas (Monarchical State) in Ancient India - Hindi

Origin and Development of Mahajanpadas (Monarchical State) in Ancient India - Hindi Duty of King (Rajan) Vedic Period History Features of Monarchy

प्राचीन भारत में राजतंत्र का उद्भव एवं विकास - दशराज्ञ युद्ध

पूर्व-वैदिक काल - Early Vedic Period

पूर्व वैदिक काल में राजनीतिक संगठन की सबसे छोटी इकाई कुल या परिवार हुआ करती थी।
  • सबसे छोटी इकाई कुल या परिवार - मुखिया कुलम
  • कई कुलों को मिलाकर ग्राम - मुखिया ग्रामणी
  • कई ग्रामों को मिलाकर जन - मुखिया जनपति या राजा
कुछ महत्वपूर्ण जनों के नाम - अनु, द्रुहु, यदु, पुरु और तुर्वशु। इन्हें पंचजन्य या पंचमानुस भी कहा जाता था। इस संदर्भ में ऋग्वेद में वर्णित दशराज्ञ युद्ध पूर्व वैदिक काल में जनों की जानकारी के लिए महत्वपूर्ण है जिसमें 10 जनों का उल्लेख मिलता है। वह दस जन हैं - अनु, द्रुहु, यदु, पुरु, तुर्वशु, पक्थ, अनिल, भलानस, शिव और विषानिन।

ऋग्वेद संहिता के प्रारंभिक हिस्सों में राजन या राजा शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है। निश्चित रूप से उस समय राजतन्त्रात्मक राज्य का विकास नहीं हुआ था इसीलिए इस शब्द का प्रयोग राजा के स्थान पर जन के मुखिया या फिर श्रेष्ठ व्यक्तित्व के लिए किया जाता है। राजा यद्यपि अपने कबीले अथवा जन का प्रधान होता था फिर भी उसका पद वंशानुगत नहीं होता था और जन में रहने वाले सबसे योग्य व्यक्ति को ही प्रमुख चुनते थे।

पूर्व-वैदिक काल में राजा के कार्य - Duty of King (Rajan) in Early Vedic Period

  1. जन और उसमे निवास करने वाले लोगो की सुरक्षा
  2. उनके संपत्ति की रक्षा
  3. दुर्गों का भेदन करना
  4. युद्धों में विजय दिलाना
  5. गोप या गोपति के रूप में कार्य करना

उत्तर-वैदिक काल - Status of Monarchical State during Later Vedic period

ऋग्वेद संहिता के प्रथम मंडल में 20 राजाओं के एक युद्ध का संदर्भ आता है जिसमें 60099 योद्धाओं ने हिस्सा लिया, यदि हम इस संख्या को शब्दशः नहीं लेते हैं तो भी या अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजनीतिक इकाइयों में परिवर्तन हो रहा था। जहां एक ओर वैदिक काल के कुछ समुदायों ने अपने जनजाति चरित्र के अस्तित्व को बनाए रखा वहीं दूसरी ओर कुछ समुदायों का विकास राज्य की दिशा में होने लगा इस तरह कई छोटे-छोटे जनों का रूपांतरण बड़ी इकाइयों में होने लगा अर्थात जनपद स्थापित हुए। जैसे - पुरु और भरत के मिलने से कुरुओं का जन्म हुआ, तथा तुर्वष और क्रीवियों के मिलने से पांचालों का उदय हुआ।

इस तरह जनों का लोप हुआ तथा उनके स्थान पर राज्यों का विकास हुआ। उत्तर वैदिक ग्रंथों में वंशगत जनजातीय इकाइयों का क्षेत्रीय राज्यों में रूपांतरण प्रतिबिंबित होता है। फिर भी अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि यह रूपांतरण प्रक्रिया में थी, पूरा नहीं हुई थी। किंतु प्रोफ़ेसर उपिंदर सिंह का मानना है कि क्षेत्रीय राज्य इस समय तक पूर्ण अस्तित्व में आ चुके थे और राज्यों का उदय उत्तर वैदिक काल के बाद हुआ। जैसे - राजा अब अधिराज, एकराट, महाराजाधिराज जैसी उपाधियाँ धारण करने लगे जिससे साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों का आभास होता है तथा साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के यज्ञ (बाजपेय, राजसूय, अश्वमेध) इत्यादि का अनुष्ठान किया जाने लगा।

उदाहरण: शतपथ ब्राह्मण में दो भरत शासकों के नाम दौशाति (या सबनीकु) एवं शतरजीत का नाम मिलता है जिन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया था। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य लोगों के नाम भी मिलते हैं जैसे कौशल नरेश पाश, पांचाल नरेश क्रेथ और सोम। इसके अतिरिक्त 12 शासकों के नाम मिलते हैं जिन्होंने महाअभिषेक किया। राजतंत्र के स्वरूप का रूपांतरण क्षेत्रीय राज्यों में है तथा ऐतरेय ब्राह्मण में शासन प्रणाली का स्पष्ट उल्लेख है।

दिशाओं के आधार पर राज्य तथा राजा का नामकरण
मध्य का राज्य - राज्य - यहां का शासक - राजा
पूर्व का राज्य - साम्राज्य - यहां का शासक -सम्राट
उत्तर का राज्य - वैराट - यहां का शासक -विराट
पश्चिम का राज्य - स्वराज्य - यहां का शासक -स्वराट
दक्षिण का राज्य - भोज्य - यहां का शासक -भोज

स्वतंत्र राज्यों के निर्माण को जटिल राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक प्रक्रियाओं की परिणिति के रूप में देखा जा सकता है। राजतंत्रात्मक राज्य का उदय कई संघर्षों, युद्ध, समझौतों, एवं संधियों का परिणाम होता है। राजतंत्र के अंतर्गत एक राजा के हाथ में सभी राजनीतिक शक्तियां केंद्रित रहती हैं। राजा का उदय सत्ता के कई दावेदारों से संघर्ष, प्रतिद्वंद्विता, शक्तियों के दमन, आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण जैसी कई गतिविधियों की परिणाम कही जा सकती है।

उत्तर-वैदिक काल में राजा के कार्य - Duties of King in Later Vedic Period

  1. उत्तर वैदिक काल का राजा पूर्व वैदिक काल की भांति युद्धों का नेतृत्व करता था
  2. अपने प्रजा के संपूर्ण निवास क्षेत्र का संरक्षण
  3. ब्राह्मणों का संरक्षण
  4. सामाजिक व्यवस्था का संस्थापक

उत्तर-वैदिक काल में राजतन्त्र की विशेषतायें - Features of Monarchy in Later Vedic

  1. वंशानुगत राजतन्त्र का विकास (उदाहरण: सतपथ एवं ऐतरेय ब्राह्मण में दश-पुरुष राज्य या दस पीढ़ियों वाले राजतन्त्र का उल्लेख है।
  2. राजन के चुनाव की प्रक्रिया का भी संदर्भ आता है। अथर्ववेद में इसकी चर्चा मिलती है, ऐसा प्रतीत होता है कि राजा के चुनाव का उदाहरण उसके वंशानुगत उत्तराधिकार के अनुमोदन के संदर्भ में है।
  3. राजा सर्वोपरि हो गया एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि
  4. दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत (राजा और देवताओं के बीच निकट संबंध दिखलाने का प्रयास); उदाहरण: शतपथ ब्राह्मण के अनुसार बाजपेई और राजसूय यज्ञ को संपन्न कराने के बाद राजा प्रजापति के तुल्य हो जाता है तथा प्रजापति का प्रत्यक्ष रूप होने के कारण एक होते हुए भी अनेकों का स्वामी हो जाता है।
Origin and Development of Mahajanpadas India

राजतन्त्र की उत्पत्ति सम्बन्धी विभिन्न सिद्धांत - Theories regarding Origin and Development of Monarchy in Ancient India

प्राचीन भारत के सर्वाधिक प्रचलित शासन प्रणाली, राजतंत्र थी जिसमें शासन सूत्र का संचालन एक व्यक्ति से हुआ करता था जिसे राजा, सम्राट आदि नामों से जाना जाता था। जो दिव्य गुणों से युक्त होता था जिससे दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करता था तथा एक मंत्रिपरिषद के परामर्श के द्वारा शासन करता था। जब हम राजतंत्र के उदय का ध्यान करते हैं तो यह पाते हैं कि राज्य की उत्पत्ति के संबंध में निम्नलिखित प्रचलित है।

दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत

ऋग्वेद, तैत्तिरीय ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण, यजुर्वेद, महाभारत, पुराण (मत्स्य) इत्यादि के आधार पर दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत प्रतिपादित होता है। ऋग्वेद में राजा को अग्नि, वरुण, इंद्र आदि नामों से संबोधित किया गया है तथा राजा को इंद्र अग्नि वरुण का अवतार माना गया है। तेतरीय ब्राह्मण के अनुसार राजा को प्रजापति से सत्ता प्राप्त हुयी। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार राज्याभिषेक के बाद देवत्व की प्राप्ति करता है। यजुर्वेद में राजा को वरुण, यम, कुबेर आदि देवताओं के रूप में प्रतिपादित करने का प्रयास किया गया है। महाभारत और पुराण भी इसी की ओर इशारा करते हैं। मनु के अनुसार संसार की रक्षा के लिए प्रभु ने ईश्वर की सृष्टि की और इसके बाद ईश्वर में राजा का निर्माण इंद्र, अग्नि, सूर्य व चंद्र कुबेर से अंश लेकर किया। इस प्रकार राजा की उत्पत्ति का संबंध ईश्वर से बताया है।

युद्ध की आवश्यकता के कारण राजतंत्र का जन्म

ऐतरेय ब्राह्मण में देव और असुर संग्राम का उल्लेख मिलता है जिसमें देवता बार बार पराजित हो रहे थे इस पर देवताओं ने विचार किया और पाया कि उनकी असफलता का कारण उनके किसी नेतृत्वकर्ता का नहीं होना है। इसलिए देवताओं ने निश्चय किया कि उन्हें एक राजा निर्वाचित करना चाहिए। इस प्रकार देवताओं ने सोम को राजा बनाया और असुरों पर विजय प्राप्त की।तैत्तरीय ब्राह्मण में विवरण मिलता है कि देवों में श्रेष्ठ, शक्तिशाली और यशस्वी होने के कारण इन्द्र देवों के राजा बने। इस प्रकार पता चलता है कि युद्ध की आवश्यकता से प्रेरित होकर साहस शौर्य से परिपूर्ण कोई व्यक्ति राजा बनाया गया।

सामाजिक समझौते का सिद्धांत

जब समाज ने धर्मशास्त्र का समुचित पालन करना छोड़ दिया तो चारों ओर अशांति एवं अव्यवस्था का राज्य स्थापित हुआ। इससे निजात पाने के लिए कुछ निश्चित शर्तों पर राजा का निर्वाचन हुआ। इस सिद्धांत की पुष्टि महाभारत, अर्थशास्त्र एवं राज्याभिषेक के समय पाठ किए जाने वाले वैदिक मंत्रों से होती है।

पैतृक संयुक्त कुटुम्ब पद्धति से राजतन्त्र का उदय

A. S. Altekar ने पैतृक संयुक्त कुटुम्ब पद्धति से राजतंत्र का उदय माना है। शाहस, रणकौशल तथा शौर्य आदि के आधार पर सर्वश्रेष्ठ कुलपति विशपति बनता था। विश्पतिओं में सर्वश्रेष्ठ व्यक् तिजनपति या राजा बनता था। उसकी योग्यता की जांच रथ दौड़ से की जाती होगी इस रथ दौड़ की स्मृति राज्याभिषेक के समय में किए जाने वाले वाजपेई यज्ञ में विद्यमान है। इसमें रथ दौड़ एक अनुष्ठान संपन्न होता था जिसमें राजा ही प्रथम आता था।

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