भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में आने वाली कठिनाइयां - Ancient Indian History Notes

Notes on Problems in reconstruction of ancient Indian history

Problems in re-construction of Ancient Indian History

अधिकांश पाश्चात्य विद्वानों की यह धारणा रही है की प्राचीन भारतीयों में इतिहास दृष्टि का सर्वथा आभाव था। यही कारण है की भारत में प्राचीन भारत के लिए हमे समसामयिक ऐतिहासिक ग्रंथो के प्रणेता का पता नही चलता जैसे कि यूनान के इतिहास के लिए हेरोडोटस, रोम के विवरण के लिए लिविये की कृतियां उपलब्ध हैं। तथापि प्राचीन भारत के इतिहास पुनर्निर्माण में सहायक सामग्री की कमी नही है। धर्मग्रंथो, ऐतिहासिक ग्रंथो तथा विदेशी यात्रियों द्वारा प्रस्तुत विवरणों से प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में काफी सामग्री प्राप्त है। सामग्री होते हुए भी हमें अनेक कठिनाइयो का सामना करना पड़ता है।

Reconstruction of Ancient Indian History
Major Problems faced during Re-construction of Ancient Indian History

प्राचीन भारतीयों के बौद्धिक जीवन की सबसे बड़ी त्रुटि यह थी की उनकी सभ्यता का श्रुतिय इतिहास होने के बाद भी उसे कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करने की प्रवृत्ति का अभाव था। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए A.B. कीथ ने लिखा है कि "इस साहित्य के पर्याप्त उपलब्ध होने के बाद भी इतिहास का निरूपण इतना सोचनीय है की संस्कृत साहित्य के सम्पूर्ण काल में एक भी ऐसा लेखक नही है, जिसको गंभीरता के साथ आलोचनात्मक इतिहास क्रम के रूप में मान्यता दी जा सके।"

कालक्रम निर्धारण से संबंधित कठिनाई

घटनाओ की तिथियों का आभाव

जब जानकारी उपलब्ध होती भी है तो उसे प्रयोग होने वाले किसी संवत के अनुसार परिवर्तित करना कठिन है। तिथि निर्धारण की समस्या के उदाहरण के रूप में अशोक से संबंधित एक वृतांत लिया जा सकता है। उसने अपने शासन के 8वे वर्ष में कलिंग पर विजय प्राप्त करने के लिए आक्रमण कर दिया, इस तथ्य की स्पष्टता असंदिग्ध है परंतु यह उसके राज्याभिषेक तथा कलिंग युद्ध के तिथि के संबंध में संदेह का निवारण नही कर सकता।

प्राचीन भारत में साहित्य प्रायः धार्मिक हैं

प्राचीन काल में ब्राह्मण, बौद्ध और जैन धर्मग्रंथो की प्रधानता थी। ब्राह्मण ग्रंथो में वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृति आदि प्रमुख हैं। बौद्ध साहित्य भी इतिहास निर्माण में सहायक है तथा इसमे प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री है। इसमे त्रिपिटक, मिलिंद्रप्रश्न, दीपवंश, महावंश प्रमुख हैं। किन्तु धर्म प्रधान साहित्य का इतिहास निर्माण में उपयोग करने में अनेक कठिनाइयां आती हैं। इस प्रकार के धर्म प्रधान साहित्यों में से यदि किसी एक साहित्य के आधार पर इतिहास निर्माण किया जाए तो वह सही नही हो सकता क्योकि प्रत्येक धर्म साहित्य अपने धर्म की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए पुर्वाग्रह से युक्त होता है। जैसे बौद्ध ग्रंथ अशोक के बौद्ध होने के पूर्व जीवन को हिंसा, अत्याचार और निर्दयतापूर्ण बताते हैं और उसे चण्डअशोक कहते है। परंतु ऐसे विवरणों की की सत्यपरता संदेहपूर्ण है क्योकि बहुत संभव है की बौद्ध लेखको ने बौद्ध धर्म की महत्ता बताने के लिए अशोक के प्रारंभिक जीवन के विषय में ऐसा लिखा हो। दिव्यावदान में भी कुछ ऐसा ही विवरण है, जिसमे पुष्यमित्र शुंग को यह घोषणा करते हुए बताया गया है कि जो उसे एक बौद्ध भिक्षु का सिर ला कर देगा उसे पारितोषिक के रूप में 100 दिनार दिया जाएगा।

भारतीय साहित्य की प्राचीनतम परम्पराए पीढ़ी दर पीढ़ी चली आती थी और इस प्रकार उनमे क्षेपक अंश का आ जाना स्वाभाविक था। भारतीय साहित्य क्षेपकों पर आधारित होने के कारण इनका संकलन करना दुष्कर है। वहीं ऐतिहासिक ग्रंथो जैसे विक्रमांकदेवचरित, हर्षचरित, महाकाव्य आदि ग्रंथो में बहुत सी ऐतिहासिक घटनाएं वर्णित है परंतु कल्पना की उड़ान तथा रूपकों की प्रचुरता के कारण इतिहास निकलना कठिन है।

प्राचीन भारत में विभिन्नता के कारण इतिहास लेखन कठिन कार्य है। इस प्रकार, प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में लिए बहुत अन्वेषण, शोध और विचार की जरूरत है

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